सागर। पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य (अग्रणी) महाविद्यालय, सागर के हिंदी विभाग द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा में महामाहेश्वर अभिनवगुप्त का योगदान विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुक्रवार 31अक्टूबर को महाविद्यालय के आदिगुरु शंकराचार्य सभागार में समापन हुआ। इस संगोष्ठी का केंद्रीय उद्देश्य कश्मीर के महान दार्शनिक, तत्त्वज्ञ, सौन्दर्यशास्त्री एवं योगी महामाहेश्वर अभिनवगुप्त (950-1016 ई.) के अद्भुत योगदान को भारतीय ज्ञान परंपरा की दृष्टि से पुनः समझना और समकालीन परिप्रेक्ष्य में उनके विचारों की प्रासंगिकता पर विमर्श करना था। द्वितीय दिवस का उद्घाटन सत्र पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलगुरु डॉ. विजय मनोहर तिवारी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। उच्च शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय अतिरिक्त संचालक डॉ. नीरज दुबे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. जी एस चौबे रहे। सत्र के शुभारंभ पर प्राचार्य डॉ. सरोज गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत उद्बोधन देते हुए अभिनवगुप्त के व्यक्तित्व कृतित्व पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के संयोजक डा अवधेश प्रताप सिंह ने संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। विचार सत्र में डॉ. किरन आर्या, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, ईएमआरसी सागर के निदेशक डॉ. पंकज तिवारी, इंक मीडिया पत्रकारिता संस्थान, सागर के निदेशक डॉ. आशीष द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार सूर्यकांत पाठक व कार्टूनिस्ट अम्बिका यादव सहित देश के विभिन्न राज्यों के विद्वान, शोधार्थी एवं प्राध्यापक सम्मिलित हुए। विचार सत्र का संचालन सेमिनार के सचिव डा राना कुँजर सिंह ने किया। उद्धघाटन सत्र को संबोधित करते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष कुलगुरु डॉ. विजय मनोहर तिवारी नेअपने वक्तव्य में कहा कि पिछले 1000-1200 वर्षों की भयानक अंधेरे के दौर से निकलकर 15 अगस्त 1947 को अपनी मूल पहचान के साथ जागना दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार है। उन्होंने कहा कि इन आचार्य परंपराओं ने भारत के सॉफ्टवेयर को मजबूत किया। जिसकी बदौलत आतंकवाद और विदेशी आताताइयों के हमलों के बाद भी हम बचे रहे। उन्होंने छात्रों को भारत के पिछले 1000-1200 वर्षों का इतिहास, खासकर अध्यात्म और स्थापत्य के संदर्भ में पढ़ने का आह्वान किया। मुख्य अतिथि डॉ. नीरज दुबे ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का सच्चा सार ज्ञान के निरंतर प्रवाह में निहित है। उन्होंने अभिनवगुप्त को इस परंपरा का शिखर बताते हुए कहा कि उन्होंने विभिन्न विचारधाराओं का संश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा पी.एम. ऊषा योजना के तहत आयोजित ऐसी संगोष्ठियाँ युवाओं को इन गहन स्वदेशी बौद्धिक विरासतों से जोड़ने और उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में इन्हें एकीकृत करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। जे एन यू दिल्ली के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा रजनीश मिश्रा ने ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी के साथ अभिनव गुप्त के दर्शन पर प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि वक्ता डॉ. जी एस चौबे ने अभिनवगुप्त के दर्शन को स्वास्थ्य से जोड़ते हुए कहा कि उनके शैव दर्शन में शिव और जीव में कोई अंतर नहीं होता। उन्होंने विमर्श (आत्म-चिंतन) और चेतना की संतुलित अवस्था (शांत रस) की अवधारणाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ये सीधे मानव स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन को प्रभावित करती हैं। डा. किरन आर्या ने अभिनवगुप्त के नवम शांत रस के योगदान और उनके दर्शन के अनूठे सिद्धांत कि ब्रह्म और जगत दोनों सत्य हैं पर प्रकाश डाला था। समापन सत्र में भोपाल से डा. उमेश सिंह व डा. सुकदेव वाजपेयी ने अभिनव गुप्त के पराद्वैत दर्शन को कृष्ण गोपी संवाद से सिद्ध किया। दो दिवसीय इस संगोष्ठी के समापन सत्र में अभिनवगुप्त के तंत्र, दर्शन, नीति, साहित्य, संगीत, नाट्यशास्त्र और सौन्दर्यशास्त्र जैसे विविध क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान पर सारगर्भित चर्चा की गई।
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